आज सुबह से ही मन के अंदर कुछ अजीब सी लहरें चल रही थी । कभी मन एक तालाब के पानि क तरह स्थिर रेहता, तो जाने कहाँ से जैसे किसी बच्चे ने एक ज़ोरदार पत्थर सन्न करते हुए फेंका हो और मेरे मन में स्मृतियों की तेज़ लेहरें चलने लगती।
कभी-कभी मन एक तूफान में फ़सी उस कशती सा लगता जिसे समुंद्र की उँची-नीची घेहरी लेहरों का साम्भाना करना पड़ रहा था… और मुझे इस तूफान में डट कर खड़ा रेहना था। स्कूल के दिनों में आखिर ‘सर्वाइविल ऑफ द फिटेस्ट’ की थ्योरी मैनें भी तो पड़ी थी।
पिछलें 6 महिनों से, जबसे लॉकडाउन हुआ था, मेरी जैसीं बहुत सी ज़िंदगियाँ थम सी गई थी। इस निरंतर चलते रेहने वाले देश में जहाँ बहुत से लोग दिन भर काम करके रात की दो रोटी अपने और अपने परिवर के लिए सुनिश्चित करते हैं, वह आज रुक गया था। पूरे देश को एकदम से किसी ऐलीअन वायरस ने मानो रेडी बोलने से पहले ही स्टैचू कर दिया था। मैं, सारे समझदार खिलाड़ियों की तरह, इस वायरस के चंगुल से बचने के लिए अपने घर की चार दीवारों मैं सेफली छुप कर बैठी थी। आखिर घर होते किस लिए होते है, सुरक्षा क लिए ही ना।
मेरी माँ बच्चों की परवरिश और बाबूजी के, अगर मैं आज-कल की भाषा मैं बोलू तो, सूपर-हेक्टिक स्केजूल के बीच एक कुशल गृहनी क तरह ताल-मेल बना कर घर को चलाती थी। जब मैं 1970 के दशक मैं पहले हाई-स्कूल और फिर कॉलेज जाने लगी, तभी से मेरी माँ ने मुझे भी यही ट्रैनिंग देने लगी थी। आमूमन इंडिया मैं ऐसा ही होता हैं। लड़कियों को घर का काम आना ऑटोमैटिक्ली अन्डर्स्टुड होता है।
मैं इन सब खयालों मैं डूबी ही थी के पास के चर्च से दिन क बारह बजे बजने वाले घंटे की आवाज सुनाई दी। मुझे मालूम था की 12 बज गए होंगे, फिर भी आदत से मजबूर होके मैंने दीवार पे टंगी घड़ी की ओर नजर मार्के कन्फर्म कर लिया।
खाना बनाने का समय हो गया था। जब बच्चे थे तो पूरा खाना बनाती थी.. दाल, रोटी, सब्जी, चावल.. कभी-कभी चटनी और राइता भी बना लेती थी। पर आज इस घर मैं एकलौती शेष बची मैं.. आजकल अपने लिए सिर्फ एक रोटी और सब्ज़ी ही बना लेती हूँ। कभी-कभी तो अपने बचपन का पसंदीदा, दूध-शक्कर-रोटी भी खा लेती हू। बचपन की यादें आखिर ताज़ा करने का इस से अच्छा मोका कहाँ होता है, जब आपको खाना बनानने का मन नहीं कर रहा हो। अब कौन करे इतना ताम-झाम रोज-रोज.. बाजार से सब्जी लाओ, फिर काटो और फिर बनाओ..और खाने वाले लोग कितने, एक अकेली मैं। बस यार बहुत कर लिया!
मेरी बेटी और बेटा दोनों ही आजकल मुझसे फोन पे तलब कर लेते हैं , “मम्मी आज खाने मैं क्या बनाया है आपने? दूध-रोटी, दूध-ब्रेड तो नहीं खा रही हो ना?
मेरी बेटी तो कभी कदार मुझे डाट भी देती थी, जैसे कि वो मेरी माँ हो। “इतनी दवाइयाँ लेती हो तो सॉलिद खाना खाया करो, अदर्वाइज़ साइड-इफेक्ट होंगे।”
मेरे बेटे ने मोबाईल पे ऐप्लकैशन दाल दिया है जिससे आसानी से दूध आदि घर का सामान दुकानवाला लड़का घर ही पे देकर चला जाता है। बेटे के निर्देश है, “करोना को हल्के मे नहीं लेना मम्मी, पता चला तो आपने अपनी गाड़ी निकली और चल दी बाज़ार। इट इज रिस्की फॉर सीनियर-सिटिज़न। आप थोड़ा समझो, कुछ दिन की बात हैं…!”
‘कुछ’ दिन कब महीनों मैं बदल जाएंगे किसी ने सोच ही नहीं था। बेटी, नेहा, शादी के बाद दिल्ली मे रहती थी. आब तो उसका एक थोड़ा नटखट सा मगर बहुत प्यारा एक 6 साल का बेटा भी था। मेरा बड़ा बेटा, अभिषेक, मेरे ही शहर के दूसरे छोर पे रहता था। 30 साल पहले यह शहर कितना छोटा हुआ करता था और आज इसके एक छोर से दूसरे कोने मे पहुचना, दूसरे शहर जाने क बराबर लगता है। अपनी दो पहिया गाड़ी से वहाँ जाना मेरे बस का तो नहीं हैं।
अभिषेक का भी एक छोटा परिवार है। उसकी बेटी 8 साल की और छोटा बेटा 5 साल का है। वक्त कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। मेरे बच्चे जो इसी घर मे सारा दिन उधम मचाया करते थे, आज कितने बड़े और कामयाब हो गए हैं। यकीन ही नहीं होता की ये मेरे ही बंटी और बिटटो हे। मैं शायद एकलौती ऐसी शकस बची हूँ जो अभिषेक और नेहा को अभी भी इन्ही नामों से पुकारा करती हूँ।
मेरे पति का सात साल पहने देहांत हो गया था। रोज़ की तरह एक दिन मॉर्निंग वॉक से लौटते समय उनके सीने मैं एकदम से दर्द उठा और वो हमारे घर की सीढ़ियों पे ही गिर पड़े थे।
हमारे पड़ोसी, शर्मा जी ने घबराते हुए मुझे ये खबर सुनाई थी, “भाभी, शरद भाईसाहब..ब.. ब.. वो सीढ़ियों से गिर पड़े है.. और.. र.. र .. ”
“और क्या भैया.. ?” मैंने खबर की गहराई को समझते हुए पूछा था।
“शायद उन्हे हार्ट-अटैक आया हैं.. आप चिंता मत करिए मैंने एम्बुलेंस बुलवा ली है। कुछ नहीं होगा उन्हें। ” शर्मा जी ने एक ही सास मैं बिना रुके ये बात खत्म कर दी थी।
मुझे नहीं लगता मैं उस मौके पे घबराई थी.. मैं घबराती तो बच्चों को कौन संभालता? पर धक्का तो मुझे लगा ही था। मेरे पति अपनी सेहत का बहुत ध्यान रखा करते थे, फिर उन्हे हार्ट-अटैक कैसे हो गया?
आब तो सिर्फ मैं ही बची थी अपने इस 35 साल पुराने घर मे.
मुझे आज भी याद है, शादी के पहले से ही मेरे पति, शरद, ने इस बहु-मंज़िला इमारत मैं एक फ्लैट ले लिया था। 1980 के दशक मैं ऐसे अपार्टमेंट वाली इमारत गीनी-चुनी ही थी हमारे शहर मे। जहां शरद को यह बहुत ही मॉडर्न लगता था, वही उनके पिता ने थोड़ी आपती जताई थी। “लोग अपना मकान बनवाते है और तुम हो के एक अपार्टमेंट मे घर ले रहे हो.. हमारी नाक मत कटवा देना समाज मे । ” इस पर शरद ने पिताजी को मनुहार करके मना लिया था। आश्चर्य की बात तो ये है थी की मेरे सास-ससुर को इस बात पे ऐतराज था मगर उन्हे शादी के बाद शरद का उनसे अलग रहने मे कोई दिक्कत नहीं थी।
शादी के पहले दिन जैसे ही मैं अपनी पहली रसोई की रसम पूरी करके हटी थी, शरद ने नेग की जगह मेरे हाथों मैं Asian Paints के रंगों का शैड कार्ड थमा दिया था। उन्होंने उस समय तक हमारे नया घर खरीद ने की बात मुझसे साँझा नहीं की थी। मेरे सास-ससुर ने भी मेरे माँ-पापा को कुछ नहीं बताया था।
पर जैसे ही शरद ने मुझे रंगों के चयन के लिए वो शैड कार्ड दिया था, तभी मेरी सासु माँ ने मुझे बधाई देते हुए कहा था, “बधाई हो बहु, तुम्हारे पति ने तो अभी से तुम्हारे लिए घर बनवा दिया है.. और एक हम है जिनका आधा जीवन सरकारी क्वार्टरों मे बीत गया।” अब इस वाक्य को मुझे उनकी सच मे दी गई बधाई समझना चाहिए था या फिर एक सास का बहु-चर्चित तंज़.. ये सोच के आज भी मेरे दिमाग मैं खलबली मच जाती है।
“सुनिए” मैंने शरद से कहा।
“हाँ बोलो” वे मेरी तरफ देखकर मुसकुराते हुए बोले।
“क्या हम आज अपना घर देखने जा सकते है?” मैंने उसी दिन ये इच्छा अपने पति क सामने ज़ाहिर कर दी।
“हाँ-हाँ क्यू नहीं, आज शाम को चार बजे चलते है। तुम तैयार हो जाना।” उन्होंने बहुत खुश हो के मुझसे कहा था।
शरद के पास उस वक्त बजाज का स्कूटर हुआ करता था। मैं हर नव-विवाहिता की तरह बिंदी, माँग मे बड़ा-सा सिंदूर, चूड़ियाँ , पायल और साड़ी पहन के और मन ही मन चहकते हुए उनके साथ स्कूटर पे सवार हो गई। एक के बाद एक इतनी खुशियों ने मेरी ज़िंदगी मैं बहुत ही कम समय मे दस्तक दी थी रास्ते मैं शरद ने मुझे समझाया था की हमारा घर, एक मकान नहीं था बल्कि एक बड़ी सी बिल्डिंग मैं एक फ्लैट था। थोड़ी देर क लिए मैं अपने सपनों की दुनिया से बाहर आके, उनकी बातें ध्यान से सुनने लगी। अपार्ट्मन्ट मैं रहना मेरे लिए एक नया अनुभव होने वाला था।
To be continued..
P.S. This is a Hindi fiction short story. Any resemblance to any person living or dead should be thought to be purely a coincidence. Image for creative depiction only. Image Source: MidDay
“I’m taking my blog to the next level with Blogchatter’s My Friend Alexa”
Waiting for the second part. I think Ek ghar banane mai umar nikal jati hai. Aur jo aisa karne mai safal ho jate hai vo apni agli pidhi ke liye ek saugaat chod jate hai.
Such a beautiful story and that Asian paint color card is really brought smile on my face…I will be reading next part for sure!!
कभी कभी पुरानी यादें एक दोस्त की तरह होती हैं। हम उनके साथ मुस्कुरतें हैं, दुखी भी होते हैं। मगर वह हमारा साथ कभी नहीं छोड़ती हैं। अगले भाग का इंतज़ार रहेगा।
This is so beautifully written. Also, it filled with me with fear and guilt since my Dad was alone at home during the lockdown and we could only talk with him through calls. 🙁
Good to read something in hindi and I am looking forward to read part 2 as how all past & present stories gets merged into one . Keep going 🙂
WOW! I wasn’t aware that you could write so well in HIndi as well. I enjoyed reading this story and am eagerly waiting for the next part. Keep writing, Judy!
I was not aware of your talent and penchant for writing in Hindi. It is a lovely attempt. I must admit, I find Hindi a bit hard to read but I persisted with this one and liked it.
Judy, you got me hooked to the story, I am awaiting to read the next part. Very well written .
wow Judy, never knew you could write stories in Hindi. This is so well writte and depicts the emotional rollercoaster of a new wed wife so well.
Slice of life… a story that we all can relate to many levels. Read a story in Hindi after ages. Where do you type it first… quill pad or some app??
This is an interesting read. I would like to read further.
That’s very intriguing read.takes me back to old era of movies. Very beautifully penned.
Such an intriguing and captivating story, I am so much involved into it while reading. You have lovely way with Hindi stories too, look forward to read next episode.
one rarely gets to read a story written in hindi. this is a bitter sweet one, i wonder what is ahead for her, but i do hope she finds happiness ahead like she has seen with her husband in her younger life.
Really enjoyed reading this and it was a rude shock when I saw to be continued at the end! Look forward to the next part!
This is such a beautiful heart touching story. Can’t wait to read the next part of it:
This hindi story seems very interesting. I love fiction stories. I am excited to read the next part .. now waiting for your next blog ..
I am hooked to the story now. You write so beautifully, absolutely loved reading this 🙂
You have narrated your story in a very nice and entertaining way. Even my parents are elderly and living alone in Chennai. My sister lives in UK while I live in Kerala. The lockdown is a difficult time for everyone and both myself and my sister phone my parents every day and keep telling them to be careful.
I think I made a mistake in thinking you are narrating your story. Later I realized it is a bioscope. ??
I am waiting to read the rest of it…flows very well
So beautiful. How come I didn’t come across this before.
A lovely tale, Smriti! I’m usually wary of Hindi fiction, but your writing made it a breeze. #MyFriendAlexa #TinaReads
Lovely
[…] Read the first story in Smriti Bioscope group collection here Ghar. […]