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आने वाले कुछ दिनों मैं हम दोनों ने ना सिर्फ अपने रिश्ते की शुरुआत करी बल्कि घर को हम कैसे सजाएंगे उस मे जुट गए। घर क काम जल्दी-जल्दी करके मैं अखबार और मैगजीन पढ़ा करती। किस तरह क परदे होंगे और किस तरह का सोफ़ा से लेके फर्निचर किस रंग का होगा सभी कुछ सोचना था। शरद से मुझे क्लेयर निर्देश थे, “देखो भई, घर मॉडर्न तरीके से सजाना, ट्रडिशनल डिजाइन से मन ऊब गया है.. नयापन लगेगा.. और मोहतरमा पैसों की चिंता मत करना, वो सब मुझपे छोड़ दो..”
बस फिर क्या था मैं भई जी जान से जुट गई। शाम को जब शरद दफ्तर से आते, तो उनको चाय की प्याली देते हुए मैं दिन भर की सारी रिसर्च बताती।
रविवार का दिन था जब मैंने और शरद ने बाजार पहुच के कुछ फर्निचर ले लिया था। उसके साथ ही दीवारों पे कौन-कौन से रंग पुतेंगे वो भई रंग की दुकान जाकर निश्चित कर लिया था। इसी बीच हुमने थोड़ी देर का ब्रेक ले कर खाना खाने का मन बनाया। शरद मुझे पास ही के रेस्टोरेंट मैं लेके गए। शरद को अब तक मालूम पड़ गया था कि मुझे दाल-बाटी-चूरमा बहुत पसंद था.. सो वही बैरा से वही कहला दिया गया था। खाना खाते-खाते मैंने शरद से कहा था, “देखिए अगर आप ठीक समझे तो कपड़ा बाज़ार से आज गद्दे, तकहिए , मछरदानी और चद्दरें भी ले लेते है। आप क्या सोचते हैं इस ?”
ईस पर शरद ने कहा, “देखो जो भी लेना है जल्दी ले लेना।। औरतें ना जाने क्यू खरीदारी मे इतना वक्त लगाती है।” उनका ये व्यंग सुन के मैं थोड़ा रुआ सी गई थी.. मेरी लटकी शक्ल देख का मेरे पति रह नहीं पाए और कहने लगे, “आई एम सॉरी बाबा, फिर ऐसी बात नहीं कहूँगा, जितना वक्त लगाना है लगाओ.. अब क्या आइस-क्रीम मँगवाई जाए, मैडम के चेहरे पे मुस्कुराहट लाने क लिए?”
मेरे चेहरे पे आइस क्रीम का जिक्र होते ही बड़ी सी मुस्कान या गई। मैंने चहकते हुए कहा था, “जरूर खाएंगे पर यहाँ नहीं, कपड़ा बाजार के कोने पे जो कुल्फी वाले भैया हैं ना उनकी दुकान से..” तो चलो कहते हुए शरद उठ खड़े हुए..
उस दिन हम सिर्फ तकहीये और गद्दे ही ले पाए थे..
धीरे-धीरे हम ने कभी अकेले जाके और कभी सास-ससुर क साथ हो के गृह प्रवेश के दिन तक, घर सजाने का सारा सामान जोड़ लिया था। अरे इन सब बातों के बीच मैं आपको घर की रंगाई का एक एतिहासिक किस्सा तो बताना ही भूल गई। सो हुआ यूं के शादी के पहले दिन जब इन्होंने मुझे रंगों क चयन के लिए जब वो शैड कार्ड दिया था.. तो उसी वक्त से मैं घर की रंगाई के लिए सबसे ज्यादा उत्साहित थी। पूरे दो दिन कि सोच-विचार के बाद मैंने अपने 2 बेडरूम, हॉल और किचन के लिए रंग पक्का करे थे।
बीच मैं शरद ने भी अपने पसंदीदा कुछ रंग मुझे सुझाए थे पर लड़कों की रंगों की समझ उतनी ही ना गवारा होती है जितनी कि उनका साग-सब्ज़ी खरीदना.. खैर आज कल तो लड़के और लड़कियां सब एक बराबर हो गए है.. पर उन दिनों बात थोड़ी अलग हुआ करती थी। एक शाम हम गलियारे मैं बैठ कर चाय पर चर्चा कर रहे थे। “अरे मैं तो कहता हू क सारे घर को सफेद ही पुटवा देते हैं.. आलीशान लगेगा।” शरद ने कहा ।
इस सुझाव को तो पास ही बैठी मेरी सासु माँ ने ही सिरे से खारिज कर दिया। वो कहने लगी, “अरे तेरी तो पसंद ही निराली है लला , घर को सजाने की बात कर रही है वो ना क तेरे दफ्तर को रंगाने की। “
धीरे से हम सास-बहु ने एक मीठी सी चुटकी ले ली थी उस शकस की जिससे हम दोनों ही बहुत प्यार करते थे। माँ ने अपनी बात खतम करते हुए बोल,“रहने दे तेरे से नहीं होगा, आ बहु मेरे पास आ, मैं तेरी मद्दद कर देती हू।”
पर मुझे क्या पता था की अपने नए आशियाने को रंगवाने की मेरी इच्छा को पूरा होने मैं अभी 6 महीने का वक्त और लगना था। एक दिन जब शरद दफ्तर से घर लौटे तो उन्होंने खाने क बाद एक ठीक समय देख कर मुझे बताया था, “स्मृति मुझे टॉमहे कुछ बताना है..”
“हाँ बताईए ..” मैं मच्छरदानी लगाते हुए बोली।
“बात ऐसी है के अपने घर कि रंगाई तो गृह प्रवेश तक नहीं हो पाएगी।। बिल्डिंग जिसने बनवाई है उनके दफ्तर से फोन आया था।। और उन्होंने ये बताया था ki अभी 6 महीने तक पालस्तर ही रहने देने से याचा रहेगा।” शरद ने दुख जताते हुए ये खबर मुझे बताई थी।
शरद की बात सुनते से ही मेरी आँखें भर आई औरे मैं रोने लगी। “अरे तुम क्यू रो रही हो, 6 महीने क बाद, दिवाली से भी पहले, वो ही लोग अपने मन-पसंद रंगों से पुताई करवा देंगे। “
बहुत मनाने क बाद भी जब मैं चुप नहीं हुई तो ये रसोईघर से पानी लाने गए। ग्लास की गिरने की आवाज से मेरी सासु माँ भी बाहर आई तो उन्हे भी इस बारे मैं बताया गया। हमारे कमरे मैं आके उन्होंने भी मुझे चुप कराने की कोशिश करी पर उस दिन मैं अपने आपको संभाल ही नहीं पा रही थी। उस रात मैं रोते-रोते ही सो गई। आज भी जब ये वाक्या मुझे याद आता है तो बड़ी हसी आती है।
अगली शाम ये गरम-गरम इमारती ले आए और मैं फिर एक बार खुश हो गई।
गृह प्रवेश क दिन मैं और शरद दूसरी दफा हवं क सामने बैठे थे। मैंने हल्की गुलाबी रंग की बनरक्षी सिल्क की साड़ी पहनी थी, जो की मेरी मुझे मेरी माँ ने दी थी। इन्होंने ने भी कोसा सिल्क का कुर्ता-पेजमा पहन था.. यह भी मेरे मायके से आया था। सब बहुत खुश थे। हलवाईयों को बिल्डिंग क पीछे जगह दे दी गई थी। मेहमानों और रिश्तेदारों के लिए सामने क तरफ शामियाना लगा के इंतेजाम किया गया था। मेरी ननंद अपने पति और बच्चों के साथ आई थी।”
शाम को 5.15 का महूरत था। हवं क बाद गाजे-बाजे बजने लगे। शरद क पिताजी घर मैं सबसे बड़े थे सो उन्ही से फ़ीता कटवाया था। मुझे मेरी सास ने कुमकुम की थाली मै हाथ डुबाके और बाद मे दरवाज़े की नजदीक वाली दीवार पे हथेलियों की छापने को कहा था.
फिर मेरी नन्द, पूजा ने हल्दी कुम -कुम करके हमारा अंदर स्वागत कराया था। तालियों और फूल दोनों की ही बारिश खूब हुई थी।
शरद बहुत खुश थे।। इतने के हस्ते हस्ते उनकी आखों की कोनों मैं हल्की नमी आ गई थी। कुछ भी कहो अपने पैसों से बनाया हुआ घर कि बात ही कुछ और होती है।
आऊर मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे की मैं फिर से एक नई नवेली भयाता बनी थी और आज फिर एक बार मैं गृह प्रवेश किया था।
उस बहु मंज़िला अपार्टमेंट मैं हम पहले लोग थे।। सो कुछ दिन मेरे सास-ससुर भी हमारे साथ रहे थे। फिर शर्मा जी का परिवार रहने आ गया। मेरी, शर्मा जी की पत्नी, सुनीता भाभी से खूब पटती थी। रोज का खाना बनाने क बाद हम दोनों एक दूसरे के घर जाके खूब बातें करते थे.. कितने अच्छे दिन थे वो!
फिर साल दर साल निकलते गए और इस घर से कितनी ही यादें जुड़ती चली गई। पहली दफा जब हम अभिषेक को जन्म के बाद इस घर मैं ले कर आए थे तो सुनीता भाभी ने अपनी तरफ से दावत राखी थी। थोड़े सालों मैं बिटटो आ गई।। दो बच्चों के बाद तो इस घर मैं रौनक ही लग गई थी।
बच्चों का अलग कमरा था, और उसी एक कमरे मे जगह और चीजों क लिए वो लड़ाईयां जो मेरी डाट क बाद ही खत्म होती थी। इतने सब सालों मैं कितने ही जन्मदिन, हमारी शादी की सालगिरह मनाई हमने। होली, दिवाली भी सारे पड़ोसी मिलके मनाया करते थे। दिवाली क दिन जल्दी-जल्दी इस घर मैं पूजा खत्म करके सास-ससुर क घर लक्ष्मी पूजा क लिए जाना.. कितनी खुशियों क पल देखे है मैंने इस घर मे।
फिर अभिषेक का इस घर से जाना, पहले पढ़ाई क लिए, बाद मै बड़े शहर मैं नौकरी क लिए। और फाइनली जब उसने अपना घर लिया था शादी क बाद। ठीक वैसे ही जैसे शरद ने लिया था। आखिर शरद बंटी क रोल मोडेल थे।
बिटटो की शादी कर उसे भी इसी घर से विद किया था मैंने और शरद ने।
आऊर फिर थेयक डेढ़ साल बाद, शरद का इसी घर की सीढ़ियों पे गिर पड़ना।। कभी नहीं उठ पाने के लिए। इस खयाल से ही मेरी आखें दाब दाब आईं।
आज मैं केवल मैं खड़ी अपने इसी प्यारे से आशियाने मे शेष.. एक गहरी सास भरते हुए और अपने आपको खुद ही संभालते हुए, मैंने अपने आप से कहा, “उफ्फ़ कितनी सारी यादें जुड़ी है मेरी इस घर से।”
मैं पानी पीने चली ही थी क घर की घंटी बजी.. सामने अभिषेक, उसकी पत्नी और मेरी जान के टुकड़े, मेरा पोता, निश्चय और मेरी पोती, ‘निहारिका खड़े हुई थी।
“दादी..” एक बार फिर मैं अपने घर का द्वार खोला और खुशियां यूं चली आई फिर से मेरे घर मे।
P.S. This is a Hindi fiction short story. Any resemblance to any person living or dead should be thought to be purely a coincidence. Image for creative depiction only. Image Source: Dhrupad
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wow Hindi story..you know dear, since last few days I am also thinking to write something in Hindi. it gives a different kind of satisfaction when we writes in our mother tongue. though I had not read first part of your story. But this was really like good. loved the narration and conversation between main characters.
Thank you so much for sharing this story. I love it totally. Though I am a malayali I tried to read it and I loved how you have narrated.
For every woman, the beginning of a new life is special. You have made us walk through the memory lane with this story. Thank you so much for sharing.
You have a lucid style of narration. You are immensely talented. Keep nurturing and write more. Loved your style totally
This story looks like I so familiar, yes, buying and then decorating your own home is always gives pleasure. Keep writing such sweet and beautiful stories!!
That’s a lovely story. So well said, a home is made not by the stones and colors but by the people and the memories. My mom too has so many stories of our house and every time we go.. conversations just flow around it
I love reading stories as they give insights into different lives. Your story reminded me somehow of my mama’s house…. I remember the big hawan they did before moving into their new house and the years of memories we made there.
Such a wonderful story of what old aged people go through. How much they long for their kids and more for grandkids. Well written story I must say.
You write very well in hindi. Even though my hindi is not so fluent I could read and understand the story. Have to read Part 1 though.
I am reading a Hindi fiction after such a long time, it felt so good. I really liked the story, felt like watching a movie. Now I will go read the first part too.
A Heart touching story. It is difficult to see how life just goes on, and then it is some moments in between that just sweeten up the journey of life and lighten everyone
Such a beautifully written story. Kept me hooked till the end. You are a very talented writer. Kudos.
This is such an interesting fiction. In like the way you explain the minutest details so beautifully.